सप्ताह में रविवार के दिन ही क्यों होती है छुट्टी, जानें इसके पीछे का इतिहास
दफ्तरों और फैक्ट्रियों में काम करने वालों के लिए रविवार बहुत खास होता है। वे इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं।रविवार उनके लिए इसलिए खास होता है, क्योंकि पूरे सप्ताह काम करने के बाद उन्हें इस दिन छुट्टी मिलती है। जिसका उपयोग वे अपने व्यक्तिगत काम, घूूमने और आराम करने में करते हैं। रविवार की छुट्टी का इतिहास आजादी से पहले का है। वैसे तो रविवार को छुट्टी होने के पीछे कई कहानियां हैं, लेकिन भारत में एक व्यक्ति की संघर्ष की कहानी ज्यादा प्रचलित है।उस व्यक्ति को सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने साल 2005 में डाक टिकट पर उनकी तस्वीर छापी थी।
दरअसल, भारत में अंग्रेजी कैलेंडर को माना जाता है। अंग्रेज रविवार को ही छुट्टी मनाते हैं, इसलिए भारत में ही इस दिन छुट्टी होती है।
अंग्रेज रविवार को ही क्यों मनाते हैं छुट्टी?
आपतो बता दु कि अंग्रेज रविवार को ही छुटी का दिन क्यों मानते हैं। ईसाइयों का मानना है कि उनके भगवान ईसा मसीह को सूली पर लटकाने के बाद वे रविवार के दिन ही फिर से जिंदा हो गए थे।इस कारण ईसाई धर्म को मानने वाले रविवार के दिन चर्च जाते हैं और इसे मनाते हैं। कुछ समय बाद इस दिन को छुट्टी के रुप में माने जाने लगा और आधिकारिक तौर पर 1843 में इसे मान्यता मिल गई।
अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संस्था (ISO) ने सन 1986 में रविवार को छुट्टी का दिन घोषित किया।
ISO ने घोषणा कर कहा कि पूरे विश्व में रविवार को छुट्टी मनाई जाएगी। इस दिन काम करने का दवाब नहीं बनाया जाएगा। हालांकि, अभी भी पूरी दुनिया में रविवार को छुट्टी नहीं होती है।कई मुस्लिम देश जैसे UAE और सऊदी अरब आदि अभी भी इस फैसले को नहीं मानते हैं और रविवार को वहां छुट्टी नहीं होती है।
रविवार को क्यों घोषित किया गया छुट्टी का दिन?…
नई दिल्ली। दुनिया भर में रविवार को साप्ताहिक अवकाश मनाया जाता है, लेकिन भारत में पहले कामगारों के लिए किसी दिन कोई अवकाश नहीं था। उन्हें सप्ताह में रोज काम करना होता था। रविवार को ब्रिटिश अफसर और दूसरे उच्चाधिकारी छुट्टी मनाते थे, लेकिन मजदूरों के लिए छुट्टी की कोई व्यवस्था नहीं थी।
साप्ताहिक छुट्टी के लिए उठाई आवाज
उस समय श्री नारायण जी मेघाजी लोखंडे मिल के मजदूरों के नेता थे। उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों से भारतीय कामगारों को भी सप्ताह में एक दिन छुट्टी देने को कहा। उनका कहना था कि पूरे हफ्ते काम करने के बाद एक दिन का अवकाश दिया जाना सबके लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि रविवार खंडोबा देवता का भी दिन है, इसलिए इस दिन अवकाश दिया जाना चाहिए।
अंग्रेजों ने अस्वीकार कर दिया
अंग्रेज मिल मालिकों और अधिकारियों ने सप्ताह में रविवार को अवकाश दिए जाने के लोखंडे के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उनका कहना था कि मजदूरों को अवकाश नहीं दिया जा सकता। उन्हें अवकाश देने पर उत्पादन का काम प्रभावित होगा।
लोखंडे ने जारी रखा संघर्ष
प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए जाने के बाद भी लोखंडे निराश नहीं हुए और कामगारों को रविवार को अवकाश दिलाने के के लिए उन्होंने संघर्ष जारी रखा। आखिर अंग्रेजों को उनकी मांग के आगे झुकना पड़ा और 7 साल के लंबे संघर्ष के बाद 10 जून, 1890 को ब्रिटिश सरकार ने रविवार को छुट्टी का दिन घोषित किया।
माने जाते हैं ट्रेड यूनियन आंदोलन के जनक
लोखंडे को भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन का जनक भी माना जाता है। उन्होंने पहली बार कपड़ा मिल मजदूरों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने और उन्हें संगठित करने की कोशिश की। भारत सरकार ने साल 2005 में उनके सम्मान में उन पर एक डाक टिकट भी जारी किया।
सात साल के संघर्ष के बाद लगी मुहर:
उन्होंने अंग्रेजों के सामने ये पेशकश की। वे चाहते थे कि मजदूरों को एक दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए। ताकि वे आराम कर सकें और काम पर जब लौटें तो थके हुए न हों। लेकिन अंग्रेज नहीं माने। लोखंडे प्रयास करते रहे। क्योंकि अंग्रेज रविवार को ही चर्च जाया करते थे। इसलिए रविवार का दिन ही छुट्टी के लिए चुना गया।
सात साल के संघर्ष के बाद आखिरकार अंग्रेजों ने इसपर मुहर लगाई और आज तक वही परंपरा चलती आ रही है। लेकिन मुस्लिम देशों में ऐसा नहीं होता है। वहां शुक्रवार को ही छुट्टी मनाई जाती है।
भारत में Sunday की छुट्टी कब शुरू हुई?
1890 से भारत में रविवार को हुई छुट्टी
सप्ताह में एक दिन छुट्टी मांगने का यह संघर्ष और आंदोलन सालों साल चला और अंत में अंग्रेजी हुकूमत को झुकना पड़ा। इसके बाद 10 जून, 1890 को रविवार के ही दिन सप्ताह में एक छुट्टी होने का निर्णय लिया गया।