हनुमान चालीसा के बोल। Hanuman Chalisa Lyrics With Meaning (in Hindi)
हनुमान चालीसा एक हिंदू भक्ति भजन है, जिसमे भगवान हनुमान का वर्णन किया गया हैं। हनुमान चालीसा की रचना महान कवि तुलसीदास द्वारा 16वीं शताब्दी में की थी। हनुमान चालीसा को अवधी भाषा में लिखा गया था, जो उस समय के आम लोगों द्वारा बोली जाती थी।
तुलसीदासजी ने रामचरितमानस (रामायण) महाकाव्य की भी रचना की थी। हनुमान चालीसा में शुरुआत और अंत में दोहे को छोड़कर 40 छंद हैं, इसलिए इसे हनुमान चालीसा कहा जाता हैं।
हनुमान चालीसा त्रेता युग से भगवान हनुमान के अनुकरणीय और गौरवशाली योगदान की गाथा सुनाती है। भगवान हनुमान जी भगवान श्री राम के महान भक्त हैं, उन्हें भगवान राम के प्रति निस्वार्थ विश्वास, समर्पण और भक्ति के लिए जाना जता हैं। हनुमान चालीसा के बोल के माध्यम से, तुलसीदास ने भगवान हनुमान के आशीर्वाद को प्राप्त करने के कुछ तरीके बताए हैं।
गुलशन कुमार द्वारा गाई गयी हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) सुनिए :-
हनुमान चालीसा के बोल। Hanuman Chalisa Lyrics With Meaning (in Hindi)
1. श्री हनुमान चालीसा
॥दोहा॥
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन। तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा। विकट रुप धरि लंक जरावा॥
भीम रुप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं। अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिकपाल जहां ते। कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट ते हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो शत बार पाठ कर सोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥
॥दोहा॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित ह्रदय बसहु सुर भूप॥
2. हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) हिंदी अर्थ
दोहा:
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार॥
अर्थ: इन पंक्तियों में राम भक्त हनुमान कहते हैं कि चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को स्वच्छ कर, श्रीराम के दोषरहित यश का वर्णन करता हूं जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार फल देने वाला है. इस पाठ का स्मरण करते हुए स्वयं को बुद्धिहीन जानते हुए, मैं पवनपुत्र श्रीहनुमान का स्मरण करता हूं जो मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करेंगे और मेरे मन के दुखों का नाश करेंगे.
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुँचित केसा॥
अर्थ: इसका अर्थ है कि हनुमान स्वंय ज्ञान का एक विशाल सागर हैं जिनके पराक्रम का पूरे विश्व में गुणगान होता है. वे भगवान राम के दूत, अपरिमित शक्ति के धाम, अंजनि के पुत्र और पवनपुत्र नाम से जाने जाते हैं. हनुमान महान वीर और बलवान हैं, उनका अंग वज्र के समान है, वे खराब बुद्धि दूर करके शुभ बुद्धि देने वाले हैं, आप स्वर्ण के समान रंग वाले, स्वच्छ और सुन्दर वेश वाले हैं व आपके कान में कुंडल शोभायमान हैं.
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे,काँधे मूँज जनेऊ साजे॥
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मनबसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचंद्र के काज सवाँरे॥
अर्थ: अर्थात हनुमान के कंधे पर अपनी गदा है और वे हरदम श्रीराम की अराधना व उनकी आज्ञा का पालन करते हैं. हनुमान सूक्ष्म रूप में श्रीसीताजी के दर्शन करते हैं, भयंकर रूप लेकर लंका का दहन करते हैं, विशाल रूप लेकर राक्षसों का नाश करते हैं. आप विद्वान, गुणी और अत्यंत बुद्धिमान हैं व श्रीराम के कार्य करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं. हनुमान के महान तेज और प्रताप की सारा जगत वंदना करता है.
लाय सजीवन लखन जियाए, श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै, अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥
अर्थ: भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण की जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाकर हनुमान जी ने अपने आराध्य श्रीराम का मन मोह लिया. श्रीराम इतने खुश हुए कि उन्होंने अपने भाई भरत की तरह अपना प्रिय भाई माना. इससे हमें सीख लेनी चाहिए. किसी काम को करने में देर नहीं करनी चाहिए, अच्छे फल अवश्य मिलेंगे.
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
अर्थ: हनुमान जी का ऐसा व्यक्तित्व है जिसका कोई भी सनक आदि ऋषि, ब्रह्मा आदि देव और मुनि, नारद, यम, कुबेर आदि वर्णन नहीं कर सकते हैं, फिर कवि और विद्वान कैसे उसका वर्णन कर सकते हैं.
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना, लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
अर्थ: भाव, हनुमान ने ही श्रीराम और सुग्रीव को मिलाने का काम किया जिसके चलते सुग्रीव अपनी मान-प्रतिष्ठा वापस हासिल कर पाए. हनुमान की सलाह से ही विभीषण को लंका का सिंघासन हासिल हुआ.
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥
अर्थ: इन पंक्तियों से हनुमान के बचपन का ज्ञात होता है जब उन्हें भीषण भूख सता रही थी और वे सूर्य को मीठा फल समझकर उसे खाने के लिए आकाश में उड़ गए. आपने वयस्कावस्था में श्रीराम की अंगूठी को मुंह में दबाकर लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र पार किया.
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे, होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥
अर्थ: जब आपकी जिम्मेदारी में कोई काम होता है, तो जीवन सरल हो जाता है. आप ही तो स्वर्ग यानी श्रीराम तक पहुंचने के द्वार की सुरक्षा करते हैं और आपके आदेश के बिना कोई भी वहां प्रवेश नहीं कर सकता.
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहु को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक तै कापै॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
अर्थ: अर्थात हनुमान के होते हुए हमें किसी प्रकार का भय सता नहीं सकता. हनुमान के तेज से सारा विश्व कांपता है. आपके नाम का सिमरन करने से भक्त को शक्तिशाली कवच प्राप्त होता है और यही कवच हमें भूत-पिशाच और बीमारियों बचाता है.
संकट तै हनुमान छुडावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै,सोई अमित जीवन फल पावै॥
अर्थ: इसका अर्थ है कि जब भी हम रामभक्त हनुमान का मन से स्मरण करेंगे और उन्हें याद करेंगे तो हमारे सभी काम सफल होंगे. हनुमान का मन से जाप करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं.
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥
अर्थ: आप सभी जगह समाए हो, आपकी छवि चारों लोकों से भी बड़ी है व आपका प्रकाश सारे जगत में प्रसिद्ध है. आप स्वंय साधु- संतों की रक्षा करने वाले हैं, आप ही तो असुरों का विनाश करते हैं जिसके फलस्वरूप आप श्रीराम के प्रिय भी हैं. इतने बल व तेज के बावजूद भी आप कमजोर व मददगार की सहायता करते हैं व उनकी रक्षा के लिए तत्पर तैयार रहते हैं.
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त ना धरई,हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
अर्थ: इस पंक्ति का अर्थ है कि केवल हनुमान का नाम जपने से ही हमें श्रीराम प्राप्त होते हैं. आपके स्मरण से जन्म- जन्मान्तर के दुःख भूल कर भक्त अंतिम समय में श्रीराम धाम में जाता है और वहाँ जन्म लेकर हरि का भक्त कहलाता है. दूसरे देवताओं को मन में न रखते हुए, श्री हनुमान से ही सभी सुखों की प्राप्ति हो जाती है.
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
अर्थ: अर्थात हनुमान का स्मरण करने से सभी दुख-दर्द खत्म हो जाते हैं. आपका दयालु हृदय नम्र स्वभाव लोगों पर हमेशा दया करता है.
जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्ध साखी गौरीसा॥
अर्थ: इस पंक्ति से तात्पर्य है कि यदि आप सौ बार हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो आपको सिर्फ सुख व शांति प्राप्त होगी बल्कि शिव-सिद्धी भी हासिल होगी और साथ ही मनुष्य जन्म-मृत्यु से भी मुक्त हो जाता है.
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥
अर्थ: महान कवि तुलसीदास ने अपनी इस कविता का समापन करते हुए बताया है कि वे क्या हैं? वे स्वयं को भगवान का भक्त कहते हैं, सेवक मानते हैं और प्रार्थना करते हैं कि प्रभु उनके हृदय में वास करें।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
अर्थ: आप पवनपुत्र हैं, संकटमोचन हैं, मंगलमूर्ति हैं व आप देवताओं के ईश्वर श्रीराम, श्री सीता जी और श्रीलक्ष्मण के साथ मेरे हृदय में निवास कीजिए.
3. Hanuman Chalisa (In English)
Jai Hanuman gyan gun sagar
Jai Kapis tihun lok ujagar
Ram doot atulit bal dhama
Anjaani-putra Pavan sut nama
Mahabir Bikram Bajrangi
Kumati nivar sumati Ke sangi
Kanchan varan viraj subesa
Kanan Kundal Kunchit Kesha
Hath Vajra Aur Dhuvaje Viraje
Kaandhe moonj janehu sajai
Sankar suvan kesri Nandan
Tej prataap maha jag vandan
Vidyavaan guni ati chatur
Ram kaj karibe ko aatur
Prabu charitra sunibe-ko rasiya
Ram Lakhan Sita man Basiya
Laye Sanjivan Lakhan Jiyaye
Shri Raghuvir Harashi ur laye
Raghupati Kinhi bahut badai
Tum mam priye Bharat-hi-sam bhai
Sahas badan tumharo yash gaave
Asa-kahi Shripati kanth lagaave
Sankadhik Brahmaadi Muneesa
Narad-Sarad sahit Aheesa
Yam Kuber Digpaal Jahan te
Kavi kovid kahi sake kahan te
Tum upkar Sugreevahin keenha
Ram milaye rajpad deenha
Tumharo mantra Vibheeshan maana
Lankeshwar Bhaye Sub jag jana
Yug sahastra jojan par Bhanu
Leelyo tahi madhur phal janu
Ram dwaare tum rakhvare
Hoat na agya binu paisare
Sub sukh lahae tumhari sar na
Tum rakshak kahu ko dar naa
Aapan tej samharo aapai
Teenhon lok hank te kanpai
Bhoot pisaach Nikat nahin aavai
Mahavir jab naam sunavae
Nase rog harae sab peera
Japat nirantar Hanumant beera
Sankat se Hanuman chudavae
Man Karam Vachan dyan jo lavai
Sab par Ram tapasvee raja
Tin ke kaj sakal Tum saja
Aur manorath jo koi lavai
Sohi amit jeevan phal pavai
Ashta-sidhi nav nidhi ke dhata
As-var deen Janki mata
Ram rasayan tumhare pasa
Sada raho Raghupati ke dasa
Tumhare bhajan Ram ko pavai
Janam-janam ke dukh bisraavai
Anth-kaal Raghuvir pur jayee
Jahan janam Hari-Bakht Kahayee
Aur Devta Chit na dharehi
Hanumanth se hi sarve sukh karehi
Sankat kate-mite sab peera
Jo sumirai Hanumat Balbeera
Jai Jai Jai Hanuman Gosahin
Kripa Karahu Gurudev ki nyahin
Jo sat bar path kare kohi
Chutehi bandhi maha sukh hohi
4. Hanuman Chalisa | హనుమాన్ చలిసా (In Telugu)
దోహా-
శ్రీ గురు చరణ సరోజ రజ
నిజమన ముకుర సుధారి
వరణౌ రఘువర విమల యశ
జో దాయక ఫలచారి ||
బుద్ధిహీన తను జానికే
సుమిరౌ పవనకుమార
బల బుద్ధి విద్యా దేహు మోహి
హరహు కలేశ వికార ||
చౌపాఈ-
జయ హనుమాన జ్ఞానగుణసాగర |
జయ కపీశ తిహు లోక ఉజాగర || ౧ ||
రామదూత అతులిత బలధామా |
అంజనిపుత్ర పవనసుత నామా || ౨ ||
మహావీర విక్రమ బజరంగీ |
కుమతి నివార సుమతి కే సంగీ || ౩ ||
కంచన వరణ విరాజ సువేశా |
కానన కుండల కుంచిత కేశా || ౪ ||
హాథ వజ్ర ఔరు ధ్వజా విరాజై |
కాంధే మూంజ జనేవూ సాజై || ౫ ||
శంకర సువన కేసరీనందన |
తేజ ప్రతాప మహా జగవందన || ౬ ||
విద్యావాన గుణీ అతిచాతుర |
రామ కాజ కరివే కో ఆతుర || ౭ ||
ప్రభు చరిత్ర సునివే కో రసియా |
రామ లఖన సీతా మన బసియా || ౮ ||
సూక్ష్మరూప ధరి సియహి దిఖావా |
వికటరూప ధరి లంక జరావా || ౯ ||
భీమరూప ధరి అసుర సంహారే |
రామచంద్ర కే కాజ సంవారే || ౧౦ ||
లాయ సంజీవన లఖన జియాయే |
శ్రీరఘువీర హరషి వుర లాయే || ౧౧ ||
రఘుపతి కీన్హీ బహుత బడాయీ |
తుమ మమ ప్రియ భరత సమ భాయీ || ౧౨ ||
[* పాఠభేదః – కహా భరత సమ తుమ ప్రియ భాయి *]
సహస వదన తుమ్హరో యశ గావై |
అస కహి శ్రీపతి కంఠ లగావై || ౧౩ ||
సనకాదిక బ్రహ్మాది మునీశా |
నారద శారద సహిత అహీశా || ౧౪ ||
యమ కుబేర దిగపాల జహాఁ తే |
కవి కోవిద కహి సకే కహాఁ తే || ౧౫ ||
తుమ ఉపకార సుగ్రీవహి కీన్హా |
రామ మిలాయ రాజ పద దీన్హా || ౧౬ ||
తుమ్హరో మంత్ర విభీషణ మానా |
లంకేశ్వర భయె సబ జగ జానా || ౧౭ ||
యుగ సహస్ర యోజన పర భానూ |
లీల్యో తాహి మధుర ఫల జానూ || ౧౮ ||
ప్రభు ముద్రికా మేలి ముఖ మాహీ |
జలధి లాంఘి గయే అచరజ నాహీ || ౧౯ ||
దుర్గమ కాజ జగత కే జేతే |
సుగమ అనుగ్రహ తుమ్హరే తేతే || ౨౦ ||
రామ దువారే తుమ రఖవారే |
హోత న ఆజ్ఞా బిను పైఠారే || ౨౧ ||
సబ సుఖ లహై తుమ్హారీ శరణా |
తుమ రక్షక కాహూ కో డరనా || ౨౨ ||
ఆపన తేజ సంహారో ఆపై |
తీనోఁ లోక హాంక తేఁ కాంపై || ౨౩ ||
భూత పిశాచ నికట నహిఁ ఆవై |
మహావీర జబ నామ సునావై || ౨౪ ||
నాసై రోగ హరై సబ పీరా |
జపత నిరంతర హనుమత వీరా || ౨౫ ||
సంకటసే హనుమాన ఛుడావై |
మన క్రమ వచన ధ్యాన జో లావై || ౨౬ ||
సబ పర రామ తపస్వీ రాజా |
తిన కే కాజ సకల తుమ సాజా || ౨౭ ||
ఔర మనోరథ జో కోయీ లావై |
సోయి అమిత జీవన ఫల పావై || ౨౮ ||
చారోఁ యుగ ప్రతాప తుమ్హారా |
హై పరసిద్ధ జగత ఉజియారా || ౨౯ ||
సాధుసంతకే తుమ రఖవారే |
అసుర నికందన రామ దులారే || ౩౦ ||
అష్ట సిద్ధి నవ నిధి కే దాతా |
అసవర దీన్హ జానకీ మాతా || ౩౧ ||
రామ రసాయన తుమ్హరే పాసా |
సదా రహో రఘుపతి కే దాసా || ౩౨ ||
తుమ్హరే భజన రామ కో పావై |
జన్మ జన్మ కే దుఖ బిసరావై || ౩౩ ||
అంతకాల రఘుపతి పుర జాయీ | [* రఘువర *]
జహాఁ జన్మ హరిభక్త కహాయీ || ౩౪ ||
ఔర దేవతా చిత్త న ధరయీ |
హనుమత సేయి సర్వసుఖకరయీ || ౩౫ ||
సంకట హటై మిటై సబ పీరా |
జో సుమిరై హనుమత బలవీరా || ౩౬ ||
జై జై జై హనుమాన గోసాయీ |
కృపా కరహు గురు దేవ కీ నాయీ || ౩౭ ||
యహ శతవార పాఠ కర కోయీ |
ఛూటహి బంది మహాసుఖ హోయీ || ౩౮ ||
జో యహ పఢై హనుమాన చాలీసా |
హోయ సిద్ధి సాఖీ గౌరీసా || ౩౯ ||
తులసీదాస సదా హరి చేరా |
కీజై నాథ హృదయ మహ డేరా || ౪౦ ||
దోహా-
పవనతనయ సంకట హరణ
మంగళ మూరతి రూప ||
రామ లఖన సీతా సహిత
హృదయ బసహు సుర భూప ||